पूर्व मंत्री जसवंत सिंह का 82 की उम्र में निधन
अटल सरकार में मंत्री रहे जसवंत सिंह (82) का रविवार सुबह 6.55 बजे निधन हो गया। दिल्ली के आर्मी अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। 25 जून को उन्हें दिल्ली के आर्मी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनका मल्टी ऑर्गन डिस्फंक्शन सिंड्रोम का इलाज चल रहा था यानी अंगों ने ठीक से काम करना बंद कर दिया था। राजनीति में आने से पहले जसवंत सेना में थे। वे मेजर के पद से रिटायर हुए थे।
सरकार में तीन अहम विभाग (वित्त, रक्षा, विदेश) संभालने वाले जसवंत को खामियाजा भी भुगतना पड़ा। एक बार उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया गया। 2014 लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं दिए जाने से नाराज जसवंत ने खुद पार्टी छोड़ दी। तब पार्टी महासचिव रहे अमित शाह (अब गृह मंत्री) ने कहा था कि सभी फैसले नफा-नुकसान का हिसाब लगाकर ही लिए गए। 2018 में जसवंत के बेटे मानवेंद्र ने बताया था, ‘मोदी ने मुझे खुद फोन किया था। उन्होंने मेरे पिता को टिकट न दिए जाने के पीछे जयपुर के एक और दिल्ली के दो लोगों की साजिश बताई थी।’
प्रधानमंत्री ने 2 ट्वीट किए
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया, ‘जसवंत सिंह जी ने हमारे देश की पूरी लगन से सेवा की। पहले सैनिक के रूप में, बाद में राजनीति से उनका लंबा जुड़ाव रहा। अटल जी की सरकार उन्होंने बेहद अहम पोर्टफोलियो संभाले। वित्त, रक्षा और विदेश मामलों में उन्होंने मजबूत छाप छोड़ी। उनके निधन से दुखी हूं।’
प्लेन हाईजैक होने के बाद आतंकियों को लेकर कंधार गए थे
24 दिसंबर 1999 को इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट नंबर IC-814 को हाईजैक करके अफगानिस्तान के कंधार ले जाया गया था। यात्रियों को बचाने के लिए भारत सरकार को तीन आतंकी छोड़ने पड़े थे। जिन आतंकियों को छोड़ा गया था, उनमें मुश्ताक अहमद जरगर, उमर सईद शेख और मौलाना मसूद अजहर शामिल था। इन आतंकियों को लेकर जसवंत ही कंधार गए थे। 1998 में परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका ने भारत पर सख्त प्रतिबंध लगाए थे। तब जसवंत ने ही अमेरिका से बातचीत की थी। 1999 में करगिल युद्ध के दौरान भी उनकी भूमिका अहम रही।
2009 में पार्टी ने निकाल दिया
जसवंत सिंह मोहम्मद अली जिन्ना पर लिखी अपनी किताब की वजह से 2009 में भाजपा से निकाले गए थे। कहा जाता है कि ‘जिन्ना: इंडिया-पार्टीशन, इंडिपेंडेंस’ किताब में उन्होंने जिन्ना को एक तरह से धर्मनिरपेक्ष बताया था। इसके अलावा सरदार पटेल और पंडित नेहरू को भारत-पाकिस्तान विभाजन का जिम्मेदार बताया था।
2014 में भाजपा छोड़ दी
2010 में भाजपा में जसवंत की वापसी हुई। 2012 में भाजपा ने उन्हें उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया, लेकिन, यूपीए के हामिद अंसारी के हाथों हार का सामना करना पड़ा। 2014 में उन्हें भाजपा ने लोकसभा चुनाव का टिकट नहीं दिया। उनकी बाड़मेर सीट से भाजपा ने कर्नल सोनाराम चौधरी को उतारा। इसके बाद जसवंत ने भाजपा छोड़ दी। निर्दलीय चुनाव लड़े, लेकिन हार गए। इसी साल उन्हें सिर में चोट लगी। इसके बाद से जसवंत कोमा में ही थे।
सेना से राजनीति तक का सफर
जसवंत सिंह 1957 से 1966 तक सेना में रहे और 1965 की जंग में हिस्सा लिया। सेना से रिटायर्ड होने के थोड़े समय बाद ही वे जोधपुर के महाराज गज सिंह के सलाहकार बन गए। जसवंत ने 1977 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत के कहने पर राजनीति में एंट्री की और उनके दिशा-निर्देशन में आगे बढ़े। 1980 में भाजपा के गठन के समय तक वे अग्रणी भूमिका में आ चुके थे।
शेखावत के कहने पर वाजपेयी ने उन्हें राज्यसभा में भेजा। 1989 में जसवंत ने जोधपुर से लोकसभा चुनाव लड़ा और अशोक गहलोत (मौजूदा मुख्यमंत्री) को हराया। जसवंत सिंह और राजमाता विजयाराजे सिंधिया के सचिव रहे सरदार आंग्रे की पत्नियां आपस में चचेरी बहनें थी।