इंदिरा गांधी की गोद में थे बिन मां के बच्चे
इमोशनल होकर बोली थीं- अब टाइगर का शिकार देश में नहीं होगा
आज सोनिया गांधी रणथंभौर में अपना जन्मदिन मना रही हैं। राहुल और प्रियंका भी उनके साथ हैं। दरअसल रणथंभौर, टाइगर और गांधी परिवार का बहुत पुराना रिश्ता है।
50 साल पहले देश में टाइगर के शिकार पर कोई रोक नहीं थी। साल 1972 में इंदिरा गांधी ने टाइगर के शिकार पर रोक लगाई। इसके बाद वन्यजीव संरक्षण अधिनियम-1972 बनाया गया और इसी के साथ रणथंभौर के जंगलों को नेशनल पार्क घोषित किया गया। इसके बाद देश के कई जंगलों को नेशनल पार्क घोषित किया गया, जहां बाघ थे।
… क्या आप जानते हैं कि इंदिरा गांधी ने टाइगर के शिकार पर रोक क्यों लगाई?
जवाब जानने के लिए पढ़िए 50 साल पुरानी ये कहानी…
साल 1970-72 में भारतीय वन सेवा (आईएफएस) के तहत राजस्थान कैडर में एक ऑफिसर थे कैलाश सांखला। वे देश में बाघों की घटती संख्या से बेहद चिंतित थे। उसी वक्त रणथंभौर में एक बाघिन ने दो बच्चों को जन्म दिया। थोड़े दिनों बाद बाघिन की मौत हो गई। ऐसे में सांखला ने उन दोनों बच्चों को एक टोकरी में रखा और दिल्ली रवाना हो गए। सांखला ने वो दोनों शावक तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भेंट किए। इंदिरा गांधी ने दोनों शावकों को अपनी गोद में उठा लिया। उन शावकों की मां बाघिन के बारे में सुनकर इंदिरा गांधी भावुक हो गईं।
सांखला ने उन्हें बताया कि देश के जंगलों और पर्यावरण की रक्षा के लिए बाघों को बचाया जाना बहुत जरूरी है। इसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूरे देश में टाइगर प्रोजेक्ट की घोषणा की और इसकी शुरुआत रणथंभौर से की।
कानून बनाकर बाघ के शिकार पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई। रणथंभौर तब से बाघों का घर बन गया। बाद में सांखला को देश भर के टाइगर प्रोजेक्ट का प्रमुख भी बनाया गया और उन्हें साल 1992 में केन्द्र सरकार ने पद्मश्री से भी सम्मानित किया। उस वक्त राजस्थान के मौजूदा सीएम अशोक गहलोत केंद्र सरकार में मंत्री थे। अब राजस्थान में 100 से ज्यादा बाघ हैं।
राजीव गांधी के नाम पर होता रणथंभौर पार्क
रणथंभौर पार्क पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को भी बेहद पसंद था। वे सोनिया गांधी से शादी के तुरंत बाद रणथंभौर आए थे। इसके अलावा भी वे यहां कई बार आए। उन्होंने प्रधानमंत्री रहते हुए रणथंभौर के लिए कई काम कराए। साल 1998 से 2003 के बीच अशोक गहलोत पहली बार राजस्थान के CM बने तो उन्होंने रणथंभौर नेशनल पार्क का नाम राजीव गांधी के नाम पर करने की मंशा जाहिर की, लेकिन विपक्षी पार्टी भाजपा की ओर से विरोध जताए जाने पर विवाद से बचने के लिए गहलोत ने अपना इरादा टाल दिया था।
प्रियंका गांधी ने किताब में किया जिक्र
पिछले 10 साल से प्रियंका गांधी अपने दोनों बच्चों के साथ हर साल रणथंभौर पार्क में आ रही हैं। वे अब तक हजारों फोटो यहां के टाइगर की खींच चुकी हैं और उन्होंने एक किताब में भी रणथंभौर के बाघों का जिक्र किया है। प्रियंका इस साल भी अप्रैल में यहां आई थीं।
प्रियंका के बेटे रेहान वाड्रा ने तो रणथंभौर से खींचे फोटोज की एक प्रदर्शनी भी लगाई थी और प्रियंका गांधी ने एक किताब The tiger’s realm लिखी है। हिंदी में इसे बाघ की राजधानी कहते हैं।
सोनिया ने राहुल के साथ की सफारी
सोनिया गांधी अपना 76वां जन्मदिन मनाने के लिए रणथंभौर पहुंचीं। भारत जोड़ो यात्रा से ब्रेक लेकर राहुल गांधी भी सवाईमाधोपुर पहुंचे। प्रियंका गांधी भी वहां मौजूद हैं। गुरुवार शाम को सोनिया गांधी के साथ राहुल गांधी ने भी टाइगर सफारी का आनंद लिया।
ब्रिटेन की तत्कालीन महारानी के पति ने भी किया था शिकार
जनवरी 1961 में ब्रिटेन की तत्कालीन महारानी क्वीन एलिजाबेथ भी रणथंभौर आई थीं। वे जयपुर राजघराने की मेहमान बनी थीं। इस दौरे पर एलिजाबेथ और उनके पति प्रिंस फिलिप ने यहां टाइगर का शिकार भी किया था। एलिजाबेथ और उनके पति यहां दो दिन रुके थे।
उनके दौरे को याद कर जयपुर की पूर्व राजमाता गायत्री देवी ने अपनी किताब में लिखा है, ‘ड्यूक ऑफ एडिनबरा प्रिंस फिलिप ने पहले दिन एक बड़े टाइगर को मार गिराया। अगले दिन एक और टाइगर का शिकार किया गया।’
रणथंभौर में 81 टाइगर
रणथंभौर नेशनल पार्क 1700 वर्ग किलोमीटर में फैला है। यहां 81 बाघ-बाघिन हैं। एक बाघ को लगभग 35 किलोमीटर टेरेटरी की आवश्यकता होती है। ऐसे में यहां 50 बाघ रह सकते हैं। यानी रणथंभौर में 31 बाघ-बाघिन क्षमता से अधिक हैं।
राजस्थान में 100 से ज्यादा टाइगर
राजस्थान में वर्तमान में टाइगर की संख्या 100 से ज्यादा है। देश भर में इनकी संख्या करीब 3200 है। राजस्थान की कहानी इसलिए भी दिलचस्प है क्योंकि राजधानी जयपुर सहित 1970-72 तक राज्य के लगभग 17 जिलों में टाइगर की मौजूदगी थी।
यह मौजूदगी धीरे-धीरे घटती हुई 2005 में केवल एक ही जिले सवाई माधोपुर (रणथंभौर) तक सीमित रह गई। शेष सभी जिलों से टाइगर का सफाया हो गया। 2010 के बाद शुरू किए गए प्रयासों से आज फिर से यह स्थिति बनी है कि अब राजस्थान के पांच जिलों में कहीं न कहीं टाइगर मौजूद है। इन जिलों में अलवर, करौली, कोटा, बूंदी और उदयपुर शामिल हैं। इन सभी टाइगर का पैतृक घर रणथंभौर ही है। देश भर में लगभग 53 टाइगर पार्क हैं।
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